मैं तो उन रे संता रो हूँ दास जिन्होंने मन मार लिया भजन लिरिक्स

    राजस्थानी भजन

    • 16 Jul 2024
    • Admin
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    मैं तो उन रे संता रो हूँ दास जिन्होंने मन मार लिया  भजन लिरिक्स

    मैं तो उन रे संता रो हूँ दास जिन्होंने मन मार लिया  भजन लिरिक्स

     

    मैं तो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    अरे मार लिया मनडा मार लिया,
    मार लिया मनडा मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।


    मन मारीया तन वश किया,
    भय भरमना दूर,
    अरे मन मारीया तन वश किया,
    भय भरमना दूर,
    अरे बाहर तू क्यु दिखत नाही,
    अरे बाहर तू क्यु दिखत नाही,
    ओ भीतर बरसे नूर,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।


    अरे आपा बाहर जगत में बैठा,
    नहीं किसी से काम,
    अरे आपा बाहर जगत में बैठा,
    नही किसी से काम,
    ओ गुरू नहीं किसी से काम,
    अरे कुल मे कुछ अंतर नहीं,
    अरे कुल मे कुछ अंतर नाही,
    ओ संत कहू चाहे राम,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।


    अरे प्याला पाया प्रेम का,
    छोड जगत मोह,
    अरे प्याला पाया प्रेम रा,
    छोड़ जगत मोह,
    ओ माने सतगुरु ऐसा मिलया,
    माने सतगुरु ऐसा मिलीया,
    ओ सहेजे मुक्ति दोय,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।


    अरे नरसीजी रा सतगुरु स्वामी,
    दिया अमृत पाय,
    अरे नरसीजी रा सतगुरु स्वामी,
    दिया अमृत पाय,
    अरे एक बूंद सागर मे मिलगी,
    क्या तो करे जमदूत,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।


    मैं तो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया,
    अरे मार लिया मनडा मार लिया,
    मार लिया मनडा मार लिया,
    ओ मेतो उन रे संता रो हूँ दास,
    जिन्होंने मन मार लिया।।

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