मेरे दाता के दरबार में सब लोगो का खाता भक्ति भजन लिरिक्स
प्रकाशित: 01 Jun, 2025
ॐ अवधु ऐसा भेद लखाया है ॐ
पाँच तत्त्वय गुण तिनां से न्यारा उपर अविगत थाया।।
कौन कँवल में ब्रह्मां कहिजे किसमें विष्णु कहाया।
कौन कँवल में शंकर कहिजे कहाँ सतगुरू पाया । ।। ।।
खट चक्कर में ब्रह्मा कहिजे नाभी विष्णु पाया।
हिड्दा के माँही शंकर कहिजे ब्रह्माण्ड गुरू पाया । |2 ||
नाभी में से शब्द उपन्या मुख में जाय समाया।
त्रिकुटी महल में निरंजन दर से अनघड़ देव जगाया ।।3।।
चालत बुझत सतगुरू मिलज्ञा गुलाबयति गुरू पाया।
गंगायति अरज कर बोल्या देहि में दरसन पाया। ।4।।
प्रकाशित: 01 Jun, 2025
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