जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी | Bhajan Lyrics In Hindi
जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी,
देख तमाशा लकड़ी का,
क्या जीवन क्या मरण कबीरा,
खेल रचाया लकड़ी का।।
जिसमे तेरा जनम हुआ,
वो पलंग बना था लकड़ी का,
माता तुम्हारी लोरी गाए,
वो पलना था लकड़ी का,
जीते भी लकडी मरते भी लकडी,
देख तमाशा लकड़ी का।।
पड़ने चला जब पाठशाला में,
लेखन पाठी लकड़ी का,
गुरु ने जब जब डर दिखलाया,
वो डंडा था लकड़ी का,
जीते भी लकडी मरते भी लकडी,
देख तमाशा लकड़ी का।।
जिसमे तेरा ब्याह रचाया,
वो मंडप था लकड़ी का,
जिसपे तेरी शैय्या सजाई,
वो पलंग था लकड़ी का,
जीते भी लकडी मरते भी लकडी,
देख तमाशा लकड़ी का।।
FAQs – जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी भजन
Q1. 'जीते भी लकड़ी, मरते भी लकड़ी' भजन का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर: यह भजन माया, अहंकार और जीवन-मृत्यु के सत्य पर प्रकाश डालता है। जीवनभर हम लकड़ी (मूल्य) ढोते हैं और मृत्यु के समय भी लकड़ी ही काम आती है।
Q2. यह भजन किसकी शैली में है?
उत्तर: यह भजन संत कबीर की विचारधारा को दर्शाता है, जो माया और आत्मज्ञान पर केंद्रित होती है।
Q3. इस भजन का संदेश क्या है?
उत्तर: भजन हमें सिखाता है कि मूल्य केवल बाहरी वस्तुओं का नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और भक्ति का होना चाहिए।
Q4. क्या यह भजन किसी खास अवसर पर गाया जाता है?
उत्तर: यह भजन अक्सर सत्संग, वैराग्य संगति, और संन्यास पर्व जैसे अवसरों पर गाया जाता है।
Q5. इस भजन में 'चंदन लकड़ी' का क्या प्रतीक है?
उत्तर: चंदन लकड़ी बाहरी शुद्धता का प्रतीक है, लेकिन अगर मन शुद्ध नहीं है तो वह चंदन भी व्यर्थ है — यही संदेश दिया गया है।
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